हमारी सोच

हमारी सोच
हम कहां तक सोच सकते हैं ?
या यूं कहूं की हमारी सोच क्या है ?
ये सोच बनती कैसे है ?
कैसे हम किसी चीज को सही या किसी चीज को गलत मानते हैं ?
क्या हम ये जन्मजात सीख कर आते हैं ?
नहीं। यदि ऐसा होता तो एक व्यक्ति के लिए जानवरों का कत्ल करना सही और दूसरे के लिए गलत नहीं होता।
किसी व्यक्ति के लिए दहेज लेना सही होता तो किसी के लिए गलत।
तो ये सोच विकसित होती है जो भी हम बचपन से देखते आए हैं, सुनते आए हैं बोलते आए हैं उससे।
आखिर हम खुद से कभी विचार कर पाए हैं की ये सब जो हमारे आसपास हो रहा है ये हमें किस हद तक प्रभावित करता रहा है ?
हमें क्या खाना है, कब उठना है, क्या पहनना है से लेकर जीवनसाथी कैसा चुनना है तक हर एक चीज हमारी सोच निर्धारित करती है और वो सोच खुद बनती है उससे जो हम आज तक गुणते आए हैं। 
आखिर हम खुद से क्या हैं ?
क्या हम खुद से कुछ हैं भी ?
हमें अपने आप से कुछ सवाल करने चाहिए जो हमें जोड़ देंगे उस वास्तविकता से जो हमारे जीवन का आधार है। प्रश्न इतने कठिन हैं परंतु उत्तर उतने कठिन शायद न हों। 
एक बार प्रयास जरूर करें।

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